आज आएगा कोई ..... कविता
आज बजार खुला , सज कर यूँ खिड़की पे बैठ गए ;
हजारों आये , पर न आये वोह जो हमें एक बार प्यार की नज़र से देख लें ;
थोडा रोये , थोडा पछताए , फिर यूँ ही बैठे बैठे सो गए .
जब नज़र उठी तो देखा , लो चांदनी आ गयी ,
सोचा, लिपट जाएँ और थोडा कंधे पे सर रख कर सुकून की नदिया में भीग जाएँ .
फिर आएगा सूरज , फिर खुलेगा बाज़ार
और फिर हम अपनी ज़ख़्मी आत्मा को गोटे वाली चुनरी पहना कर बैठ जायेंगे .
इस इंतज़ार में , शायद आएगा कोई आज तो
हमें प्यार करने के लिए ....
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